Pandit Pradeep Mishra Katha : बैतूल की शिवपुराण में शिवभक्तों का रैला, तीसरे दिन दो लाख श्रध्दालु पहुंचे

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बैतूल टॉक्स / मां ताप्ती शिवपुराण समिति के व्दारा आयोजित कथा में शिवभक्तों का रैला दिन-प्रतिदिन नए कीर्तिमान बना रहा है।
इस संबंध में समिति के सहसंयोजक व्दय अमर आशू किलेदार और योगी राजीव खंडेलवाल ने बताया कि पहले दिन जहां एक लाख से अधिक शिवभक्त थे तो वहीं दूसरे कीचड़-पानी के बाद भी शिवभक्तों का आंकड़ा सवा लाख को पार कर गया। करीब दो लाख श्रध्दालुओं ने बैठकर पंडित प्रदीप मिश्र की शिवपुराण कथा सुनी। लोग इतनी दूर तक बैठे थे कि उन्हें पंडितजी के दर्शन तक नहीं हो रहे थे लेकिन दो दर्जन स्क्रीन और कथास्थल की जमीन ही उनके लिए पुण्यदायी थी। यह कथा 18 दिसंबर तक चलेगी।

आज इन्होंने की आरती

आज कथा के अंत में शिव-पार्वती विवाह की झांकी प्रस्तुत की गई। तीसरे दिवस की आरती सुषमा जगताप, विजय जितपुरे, नीतू ठाकुर, मनीष सोलंकी आदि जनप्रतिनिधियों एवं आमला विधायक डा योगेश पंडागरे,वरिष्ठ पत्रकार एवं समाजसेवी सुनील द्विवेदी तथा समाजसेवी बबलू खुराना, रामकिशोर बोरवन, मुन्ना मानकर के परिवार के द्वारा की गई। कथा के तीसरे दिन पहले दो दिन से भी अधिक करीब दो लाख श्रद्धालु कथा सुनने के लिए पहुंचे।

तुम महादेव का जल, मंत्र, भजन संभाल लो, देवाधिदेव तुम्हें संभाल लेंगे : पं. प्रदीप मिश्रा

पानी जब भगवान पर चढ़कर उनके स्पर्श में आ जाता है तो वह नाली में नहीं फेंका जाता बल्कि तुलसी के गमले तक पहुंच जाता है। वह जल बन जाता है और महादेव का हो जाता है। इसी तरह यदि हम शिवलिंग पर जल अर्पित करें और उसका स्पर्श कर लें तो हम महादेव के हो जाएंगे। तुम केवल उनका एक लोटा जल, उनका भजन, उनका मंत्र संभाल लों, वो तुम्हें संभाल लेगा, तुम्हारी सब मुसीबतों को संभाल लेंगे।
यह प्रवचन विख्यात कथावाचक पं. प्रदीप मिश्रा ने बैतूल के कोसमी स्थित शिवधाम में चल रही मां ताप्ती शिवपुराण कथा के तीसरे दिन की कथा सुनाते हुए दिए। पं. मिश्रा ने आगे कहा कि हमें थोड़ी भी शिवभक्ति छू जाएं तो हमारा जीवन सार्थक जाएगा। सनातन धर्म की महिमा बताते हुए उन्होंने कहा कि हम घर के काम करने के लिए तो नौकर रख लेते हैं, लेकिन भगवान को जल अर्पित करने या अर्पित किए गए जल को तुलसी के गमले तक पहुंचाने के लिए कभी नौकर नहीं रखते। वह पानी हम यदि बच्चे को भी देंगे तो वह बगैर बताए भी  तुलसी के गमले में ही ले जाकर चढ़ाएगा। हमारा सनातन धर्म बच्चों को भी यह बताता है कि कौनसा जल कहां जाएगा।

अपना दुख सबको खुद झेलना होता है
पं. मिश्रा जी ने आगे कहा कि इस दुनिया में आए हैं तो दुख तो सबको झेलना पड़ेगा। हमारे देख कोई नहीं काट सकता। सभी भगवान को भी दुख झेलने पड़े। हालांकि हमारे देख हमें ही सहना पड़ता है। जैसे हमारे बदले कोई खांस या छींक नहीं सकता, उसी तरह हमारे दुख और कोई नहीं काट सकता। दुख से बचने की कोई भभूत नहीं है। कोई बाबा या महाराज आपके दुख नहीं मिटा सकता। कोई यदि ऐसा कहे तो वह ढोंगी या प्रपंची ही होगा। केवल भगवान की भक्ति से यह दुख हम स्वयं काट सकते हैं। मात्र एक लोटा जल भगवान शिव को चढ़ाओं, वो जरुर आपके दुख मिटाएगा।

डमरू वाले भजन पर झूम उठे भक्त
पं. मिश्रा जी ने मंत्र की महिमा बताते हुए कहा कि जब हम एक साथ बैठ कर मंत्र जाप करते हैं तो परमात्मा स्वयं भक्त को ढूंढते हैं। दुखों को खत्म करने के लिए हमें भोलेनाथ को जल अर्पित करना चाहिए। यदि दुख ज्यादा है तो जल के साथ बेल पत्र भी चढ़ाएं। इससे भी ज्यादा दुख हो तो श्री शिवाय नमोस्तोभ्यं मंत्र का जाप करें। यह एक मंत्र न जाने कितनी बीमारी, कितनी मुसीबतें, कितनी परेशानियां खत्म कर देता है। एक लोटा जल चढ़ाने से आपकी कीमत स्वयं बढ़ जाती है। इसके पश्चात डमरू वाले… भजन हुआ। भजन के प्रारंभ होते ही भक्त झूमने लगे।

मां ताप्ती के नाम स्मरण का महत्व बताया
पं. मिश्रा ने बाहरी सुंदरता की जगह मन की सुंदरता पर बल देते हुए कहा कि ब्यूटी पार्लर जाने से जो सुंदरता नहीं मिल सकती वो महादेव के चरणों में जाकर मिल सकती है। मां ताप्ती ने भी कड़ी तपस्या के बाद देवाधिदेव महादेव से वर के रूप में उनकी तरह सुंदरता मांगी थी। मां ताप्ती का महत्व बताते हुए उन्होंने कहा कि गंगाजी की डूबकी लगाने, यमुना जी का पान करने और नर्मदा जी के दर्शन का बेहद महत्व है वह महत्व मां ताप्ती का केवल मुंह से नाम भर निकल जाने का है। केवल मां ताप्ती के नाम स्मरण से 100 पीढ़ियां तर जाती हैं। उनका तप इतना प्रबल है।

पं. मिश्रा ने आगे कहा कि बच्चे को माता-पिता या अन्य परिजन इसलिए डांटते, फटकारते या मारते-पीटते हैं ताकि वह कोई गलती न करें। उसी तरह धर्म कार्य में बाधा डालने वालों का भी भगवान ने वध किया था। कामदेव को उन्होंने इसलिए भस्म किया था क्योंकि वह तप करने वालों को परेशान करता था।

मुक्ति के मार्ग पर नहीं मिलता मोक्ष : पंडित मिश्र

पं. प्रदीप मिश्रा ने कहा कि बाबा देवाधिदेव महादेव की पुण्य, पवित्र, पावन शिवमहापुराण की कथा श्रवण करने का आप और हमको बैतूल नगर के इस प्रागंण में सौभाग्य प्राप्त हुआ है। बड़े भाग्यशाली है यजमान है जो अपने जीवन को सार्थक बना रहे हैं। उन्होंने कहा कि भक्ति और मुक्ति यह दो साधन हैं। डायरेक्ट अगर हम मुक्ति के साधन पर चलेंगे तो मुक्त तो हो जाएंगे पर मोक्ष नहीं मिल पाएगा। मुक्ति पा लेना एक अलग बात है और मोक्ष पा लेना दूसरी बात है। मुक्ति पाना मतलब एक योनी से दूसरी योनी में पहुंचना है इसको मुक्त होना कहा गया है।

दूसरा जन्म नहीं होना होता है मोक्ष

पं. प्रदीप मिश्रा ने कथा के दौरान कहा कि मोक्ष एक योनी को प्राप्त करने के बाद दूसरी किसी योनी में जाना ही ना पड़े। एक जन्म लेने के बाद कोई दूसरे जन्म की आस्था ही ना हो। सारे जन्म, बंधनों से हम मुक्त हो जाए और फिर इस जन्म या अगले जन्म में हमें कोई जन्म ही ना लेना पड़े। यही मोक्ष हैं। श्री मिश्रा ने कहा कि मोक्ष का मार्ग भी तप, भजन, कीर्तन और श्रवण है। इन्हीं सब का उपयोग कर मोक्ष की प्राप्ति की जा सकती है। उन्होंने कहा कि मोक्ष प्राप्त तब होता है जब मन में किसी भी प्रकार की लालसा बाकी ना रहे।

क्यों लिया हमने मृत्यु लोक में जन्म?

कथा को आगे बढ़ाते हुए पं. मिश्रा ने समझाया कि हमें परात्मा ने मृत्यु लोक में क्यों भेजा है? उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि एक बच्चे को यदि माता-पिता स्कूल भेजते हैं तो वो यह ध्यान रखते हैं कि मेरा बच्चा स्कूल से आएगा उसका इंतजार करते हैं। लेकिन जब यही बच्चा बड़ा होकर अपने पैर पर खड़ा हो जाता है तब माता-पिता उसका वैसा इंतजार नहीं करते क्यों? क्योंकि माता-पिता जानते हैं कि अब बच्चा समर्थ हो गया है और वह जीवन का आनंद ले सकता है। उसे अच्छे-बुरे का ज्ञान हो गया है। ठीक इसी तरह से यदि परात्मा ने माँ के गर्म से हमें जन्म दिया है तो उसकी भी यही अपेक्षा रहती है कि एक ना एक दिन मेरा बच्चा मेरे पास आएगा। लेकिन उस दिन क्या हम परात्मा के सामने या पास में खड़े रहने अथवा बैठने लायक होंगे? अगर हमने मृत्यु लोक में पुण्य कमाया है तो निश्चित रूप से हम परात्मा का सामना कर सकेंगे लेकिन नहीं तो अन्य की तरह हमारा भी वही हश्र होगा। ने हमें मृत्यु लोक में भेजा है तो यहां ये वेद, पुराण, शास्त्र जब भी समय मिले थोड़ा पढ़ लें ताकि हमारी जिंदगी भी थोड़ी सार्थक हो जाए है। जब भी आपको समय मिला करें तब उस समय प्रयास किया करो कि हम कोई मंत्र जाप, गीता, श्रीमद् भगवत आदि कुछ पढ़ सकें।

परात्मा की आप पर ऐसे पड़ेगी दृष्टि

हम भी हम अच्छे कपड़े पहनते हैं तो हमारे दोस्तों, सोना-चांदी, हीरे, जवाहरात पहनते हैं तो चोर की दृष्टि हमेशा हमारे आभूषणों पर होती है। इसी तरह से यदि हम भजन, कीर्तन, तप, मंत्र जाप करते हैं तो निश्चित रूप से परात्मा की दृष्टि हमने पर पड़ेगी ही। वह हमें ढूंढ लेंगे और आपकी सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करने जरा भी समय नहीं लगाएंगे। हम जब मंदिर में एक लोटा जल चढ़ाने के लिए पहुंचते हैं तो मंदिर तक या कथा स्थल तक पहुंचाने वाला कोई दूसरा नहीं होता बल्कि वह स्वयं के भजन, कीर्तन, मंत्र जाप, माला जाप, पुण्य ही आपको भगवान के दरवाजे तक ले जाता है। यह हमारा पुण्य ही है जिसके बल पर हम आज यहां बैठे हैं। उसके हो इसलिए उसने आपको यहां बुला लिया, जिसकी जहां रिश्तेदारी-संबंध होती है वहां से उसे निमंत्रण आता है और वह पहुंच जाता है। यदि आप यहां बैठे हो तो इसका मतलब आपकी भोलेनाथ से रिश्तेदारी, संबंध अच्छे हैं। यह संबंध भजन, कीर्तन, जाप, मंत्र से बनते हैं।

मंदिर में कंट्रोल और मकान में क्यों अकंट्रोल होता है मन?

पं. प्रदीप मिश्रा ने कहा कि सुंदरता ब्यूटीपार्लर में जाने से नहीं बल्कि तिलक लगाने से मिलती है। चंदन का त्रिकुंड लगाने और गले में रुद्राक्ष धारण करने से शोभा बढ़ती है। इसी तरह से मुंह की शोभा ओम नम: शिवाय: से है। इस मंत्र का जितना जाप करोगे उतनी मुख की शोभा बढ़ते जाएगी। उन्होंने कहा कि मंदिर में मन कंट्रोल में रहता है और मकान में आते ही मन अनकंट्रोल हो जाता है। मंदिर में मन, चित्त, अपने आपको को संभाल लेते हैं इसलिए हम गलत काम नहीं करते हैं और मकान में आते ही वही सब करते हैं। इसलिए भोलेनाथ से कहना कि मंदिर में मैंने अपने मन को कंट्रोल कर लिया लेकिन मकान में हमें तुम संभाल लेना कि हम कोई गलत काम नहीं करेंगे।

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